अर्ज किया है
थोड़ा और चोद लूं बस यही ठानी है मैंने
ऐ जिंदगी थोड़ा रुक जा अभी हार कहा मानी है मैंने
बचपन में मैं भी जब कोई गलती कर देता था और पिटने के आसार नजर आने लगते थे तो तुरंत किताब खोल के बैठ जाता था! वो बात अलग है कि कुटाई फिर भी होती थी। - जामिया लाइब्रेरी कांड