एक अंजान नंबर से काॅल आया,
रिसीव किया "
हां जी कहिये"
दूसरी तरफ कोई मुहतरमा थीं बोलीं "जी के बच्चे, सुबह नाश्ता किये बग़ैर ही कहां चले गये?
कितनी बार तुम्हें कहा है कि रात की लड़ाई को सुबह भूल जाया करो। लेकिन तुम्हें समझ आती नहीं।
आज आओ तुम घर तुम्हारी तबीयत सही करती हूँ। तुम्हारे बच्चों का ख्याल न होता तो तुम्हें छोड़ कर चली जाती।"
वह मुहतरमा बिना सांस लिये नाॅनस्टाप बोले जा रही थीं और मैं हक्का बक्का सोच रहा था कि ये कौन इतनी मासूम औरत है जो मुझे अपना मियां समझ कर क्लास ले रही है, इधर तो वैलेंटाइन का भी दूर दूर तक कोई सीन नज़र नहीं आता।
जब वह जरा देर सांस लेने को रुकीं तो मैंने कहा "मुहतरमा आपने शायद रांग नंबर पर क्लास ले ली है लेकिन मैं आपका शुक्र गुज़ार हूँ, दो मिनट के लिये ही सही मुझे आपकी डांट डपट से शादीशुदा वाली फीलिंग्स आ गई है।
मैं तो सदा का सिंगल हूँ बल्कि तरसा हुआ, बिलखता हुआ या यूं समझें एड़ियां रगड़ता हुआ कुंवारा हूँ।"
वो कहने लगी "भाई मैं भी कोई शादीशुदा नहीं हूँ, बस दिल की तसल्ली के लिये रांग नंबर पर मर्द की आवाज़ सुनकर क्लास ले लेती हूँ,
एक अजीब सी संतुष्टि मिलती है। वैसे मैं भी तुम्हारी तरह तरसी हुई, बिलखती हुई, एड़ियां रगड़ती हुई शदीद कुंवारी हूँ।"
साला 🤔अब तो इस तरह से भी बेइज्जती होने लगी है।😢
😂😂😂😂😂😂
Surbhi Maheshwari ki biopic se 😁🙄
बचपन में मैं भी जब कोई गलती कर देता था और पिटने के आसार नजर आने लगते थे तो तुरंत किताब खोल के बैठ जाता था! वो बात अलग है कि कुटाई फिर भी होती थी। - जामिया लाइब्रेरी कांड